lost soul 2

Tuesday 2 December 2014

हाँ, अब भी तुझे चाहने की वेबकूफीया मैं दिन में सौ बार करता हूँ।


हाँ, अब भी तेरी यादें  मेरे दिल से जाती नहीं हैं ,
हाँ,  अब भी तेरी बातें मुझे दिलों-जां से याद आती हीं क्यों  हैं,
हाँ , अब भी तेरी आँखो की गहराइयों में डूब जाने को दिल करता है,
हाँ, अब भी तेरा चेहरा मेरी नज़रों से ओझल होता ही नहीं है।

हाँ, अब भी दिल झूठी तस्सली देता है, की तुम भी मुझे याद करती तो होगी,
हाँ, अब भी कभी भूल से ही सही, कभी मेरा नाम लेती तो होगी
हाँ,  अब भी कभी मेरे पागलपन को तुम सहेलियों में बतियाती तो होगी,
हाँ , अब भी कभी वो पेड़ के नीचे सीमेंट का बेंच तुम्हे मेरी कमी का एहसास दिलाता तो होगा। 

 हाँ , अब भी तुम डाँस क्लास के बाद उसी रास्ते से   हॉस्टल तक आती तो होगी,
हाँ , अब भी तुम उस रास्ते के फ्रूट शॉप वाले भैया से दाम कम करवाती तो होगी,
हाँ, अब भी तुम चाट वाले से तीखा चाट खा कर, आंसू की धारा बहाती तो होगी,
हाँ, अब भी तुम वो रास्ते के मंदिर पे रुक कर, आँखे बंद कर सर झुकाती तो होगी।

हाँ, अब  भी हॉस्टल के छत पे तुम तारों भरी रात में जाती तो होगी,
हाँ, अब भी तुम  उन तारों से मेरी नादानियाँ  बतियाती तो होगी,
हाँ, अब भी चाँद तेरी खूबसूरती से शरमा  कर बादलों की ओट में छुपता तो होगा,
हाँ , अब भी हवा तेरे जुल्फों को मंद मंद सहलाती तो होगी। 

हाँ, अब भी तुम अकेले में अपने किताबो को खोल कर मेरे पत्रो को पाती तो होगी,
हाँ, अब भी तुम मेरे बेनामी प्रेम पत्रों को अपने सखियों को पढ़ाती तो होगी,
हाँ, अब भी उन्हें पढ़ कर, तुम होंठो की हँसी को दांतों तले दबाती तो होगी,
हाँ, अब भी मेरा इजहारे मुहब्बत तुम्हारे दिल की धड़कनों की रफ़्तार बढाती तो होंगी।

हाँ, अब भी मैं तुम्हे छूप कर उस रास्ते से जाते देखता ही तो हूँ,
हाँ, अब भी मैं तुम्हे फिर से अपने बांहों में भरने को तड़पता ही तो हूँ,
हाँ, अब भी मै आँखे बंद कर तुम्हे अपने पास ही पाता ही तो  हूँ,
हाँ, अब भी तेरी जुल्फों की घनी छाँव में सोने को ललचाता ही तो हूँ। 

हाँ, क्यों वक़्त ने दूरियों का रेगिस्तान बिछा डाला हमारे प्यार की सुनहरी बगिया में ,
हाँ, क्यों तुमने भी जाने कौन सी मज़बूरियों में अपनी राहें अलग बना डाली ,
हाँ, क्यों मैं भी लाख चाह कर भी रोक ना सका तुम्हे जाने से,
हाँ, फिर क्यों आज भी मैं तेरी हर छोटी सी याद दिल की गहराइयों में संजोये बैठा हूँ। 

हाँ, क्यों किताबो में भी तेरा चेहरा मुझे नज़र आता क्यों है,
हाँ, क्यों अब भी तेरी तस्वीर  मैं बनाता ही क्यों हूँ,
हाँ , क्यों दीवारो को उन तस्वीरों से मैं सजाता क्यों हूँ,
हाँ, क्यों तेरी उन तस्वीरों  से घंटो तेरे बारे में ही मैं बतियाता क्यों हूँ। 

हाँ, शायद वक़्त ने कुछ खेल ही तो खेला है मेरे साथ में,
हाँ, शायद दुनिया की नज़र ही तो लग गयी हमारे प्यार में,
हाँ, शायद तेरी याद मुझे उतने शिद्दत से अब तड़पाती नहीं हैं,
हाँ शायद  मैं भी पत्थर सा बनता ही जा रहा हूँ धीरे -धीरे से। 

हाँ, बड़ी कोशिश करता हूँ तेरे सामने ना आने की,
हाँ, खुद से भी झगड़ता हूँ तुझसे गिले ना करने की,
हाँ, बड़ी कोशिश करता हूँ तेरी हर एक बात भूलाने की,
हाँ, खुद को ही सजा देता हूँ हर दिन थोड़ा थोड़ा मर के जीने की । 

हाँ, कह भी नहीं सकता सामने तेरे आकर ही ,
हाँ, रह भी नहीं सकता तुम्हे एक नज़र दूर से देखे बिना ही,
हाँ, कोशिश भी करता हूँ तुम्हे भूल जाने की,
हाँ, फिर भी तुम मेरी यादों से कभी एक पल को जाती नहीं हो। 

हाँ, पागल था, हूँ, या हो गया हूँ, कौन जाने,
हाँ, दीवाना था, हूँ या हो गया हूँ, कौन जाने ,
हाँ, तुम पे मरता था,या अब भी मरता हूँ कौन जाने,
हाँ, तुम्हे चाहता था, या अब भी चाहता हूँ कौन जाने। 

वक़्त ने भर दी है  कड़वाहट सी जिंदगी में,
कुछ भी अच्छा लगता ही नहीं है, बगैर तेरे जीने में,
कोशिश भी करता हूँ खुद को व्यस्त रखने में,
फिर भी  तेरे जाने का गम ख़त्म होता नहीं है सीने में। 
हाँ, अब भी मैं नादान दिल को दिलासायें देता हूँ,
हाँ, अब भी तेरे वापस  लौटने की राहें देखता हूँ।
हाँ, अब भी सपनो में मैं तुझे ही पाता ही हूँ,
हाँ, अब भी तुझे चाहने की वेबकूफीया मैं दिन में सौ बार करता हूँ। 

क्युंकि, तुम्हे, बस तुम्हे,
हर पल हर लम्हा, 
मैं प्यार करता हूँ,
हाँ, प्यार करता हूँ।


-V. P. "नादान" 
    

  






 
    
  



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